छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिला अंतर्गत ग्राम केसतरा की माटी में जन्मे सुप्रसिद्ध गीतकार एवं कवि केदार सिंह परिहार आज पंचतत्व में विलीन हो गए ।
“छत्तीसगढ़ ल छांव करे बर मैं छानी बन जातेंव।”छत्तीसगढ़ की संस्कृति और लोकभावना को अपनी रचनाओं में समेटने वाले लोकगायक एवं छत्तीसगढ़ी साहित्य के पुरोधा श्री केदार सिंह परिहार जी के निधन का समाचार अत्यंत दुःखद है। उनकी साहित्य साधना और सृजनशीलता छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर का अमूल्य हिस्सा है। उनका जाना न केवल साहित्य जगत, बल्कि पूरे प्रदेश के लिए एक अपूरणीय क्षति है। ईश्वर से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें और शोकाकुल परिवार को यह असीम दुख सहन करने की शक्ति दें।उनका नश्वर शरीर भले ही इस दुनिया में नहीं रहा लेकिन जिन अमर गीतों को उन्होंने गाया वो छत्तीसगढ़ के जनमानस के अंतस में सदैव गुंजायमान रहेंगे। मुझे याद है हम सबका बचपन उनकी गीतों की गुनगुनाकर बड़ा हुआ है। किस तरह से उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की लोकप्रियता और पहुंच को छत्तीसगढ़ के घर घर तक पहुंचा दिया था। मेरे एक परिचित अरुण सिंह चौहान के साथ उन्होंने मिलकर किसान मितान नाम के छत्तीसगढ़ी फिल्म का निर्माण किया ,जिसके गीत उन्होंने गाए। परिहार ने कई सुप्रसिद्ध गीत लिखे हैं. 1972 में उनका लिखा एक गीत ‘छत्तीसगढ़ ल छांव करे बर मय छानही बन जातेंव’ आज 50 साल बाद भी लोगों की जुबान पर है।उनका जन्म केशतरा से दो किलोमीटर दूर पलानसरी गांव में 7 मार्च 1952 को एक किसान परिवार में हुआ. उनके पिता का नाम भागवत सिंह परिहार तथा माता का नाम श्रीमती अंबिका सिंह परिहार है. उनकी प्रारंभिक शिक्षा नवागढ़ के पास स्थित गाड़ामोर गांव में हुई. इसके बाद वे उच्च शिक्षा के लिए मुंगेली आ गए. मुंगेली के एनएसजी कॉलेज से उन्होंने बीए किया. फिर जांजगीर कॉलेज में एलएलबी की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया, लेकिन किन्हीं पारिवारिक कारणों की वजह से उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी.